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"पायन आनि परे तो परे रहै / मतिराम" के अवतरणों में अंतर
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− | प्यारो गयो दुख | + | प्यारो गयो दुख मानि कहूँ अब कैसे रहूँ यहि राति अकेली । |
− | + | आजु तौ ल्याउ मनाइ कन्हाई को मेरो न लीजियो नाँव सहेली । | |
'''मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। | '''मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। | ||
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20:45, 13 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
पाँयन आय परै तो परे रहैं केती करी मनुहारि सहेली ।
मान्यो मनायो न मैँ 'मतिराम' गुमान मे ऐसी भई अलबेली ।
प्यारो गयो दुख मानि कहूँ अब कैसे रहूँ यहि राति अकेली ।
आजु तौ ल्याउ मनाइ कन्हाई को मेरो न लीजियो नाँव सहेली ।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।