भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सियाराम / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
  
 
नहीं भागता मेले ठेले बागों खेतों में
 
नहीं भागता मेले ठेले बागों खेतों में
 
  
 
बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं
 
बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं

14:52, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

सियाराम का मन रमता है नाती पोतों में

नहीं भागता मेले ठेले बागों खेतों में

बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं

बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं

टाफी खाते, बिस्कुट खाते ठंडा पीते हैं

टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं

घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं

गुब्बारे में हवा फूंकते और उड़ाते हैं

सियाराम की दिनभर की दिनचर्या बदल गयी

नहीं कचहरी की चिन्ता बस आयी निकल गयी

चश्मे का शीशा फूटा औ छतरी टूट गयी

भूल गये भगवान सुबह की पूजा छूट गयी