"दुविधा / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=रश्मि / महादेवी वर्मा }} {{KKCat…) |
|||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
::पाषाणों में मसले या | ::पाषाणों में मसले या | ||
:::फूलों से शैशव देखूँ! | :::फूलों से शैशव देखूँ! | ||
+ | तेरे असीम आंगन की | ||
+ | :देखूँ जगमग दीवाली, | ||
+ | ::या इस निर्जन कोने के | ||
+ | :::बुझते दीपक को देखूँ! | ||
+ | देखूँ विहगों का कलरव | ||
+ | :घुलता जल की कलकल में, | ||
+ | ::निस्पन्द पड़ी वीणा से | ||
+ | :::या बिखरे मानस देखूँ! | ||
+ | मृदु रजतरश्मियां देखूँ | ||
+ | :उलझी निद्रा-पंखों में, | ||
+ | ::या निर्निमेष पलकों में | ||
+ | :::चिन्ता का अभिनय देखूँ! | ||
+ | तुझ में अम्लान हँसी है | ||
+ | :इसमें अजस्र आँसू-जल, | ||
+ | ::तेरा वैभव देखूँ या | ||
+ | :::जीवन का क्रन्दन देखूँ! | ||
</poem> | </poem> |
17:01, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कह दे मां अब क्या देखूँ!
देखूँ खिलतीं कलियां या
प्यासे सूखे अधरों को,
तेरी चिर यौवन-सुषमा
या जर्जर जीवन देखूँ!
देखूँ हिमहीरक हँसते
हिलते नीले कमलों पर,
या मुरझाई पलकों से
झरते आँसू-कण देखूँ!
सौरभ पी पी कर बहता
देखूँ यह मन्द समीरण,
दुख की घूँटें पीतीं या
ठंढी सांसों को देखूँ।
खेलूँ परागमय मधुमय
तेरी वसन्त-छाया में,
या झुलसे संतापों से
प्राणों का पतझड़ देखूँ!
मकरन्द-पगी केसर पर
जीती मधुपरियाँ ढूँढूं,
या उरपंजर में कण को
तरसे जीवनशुक देखूँ!
कलियों की घनजाली में
छिपती देखूँ लतिकायें,
या दुर्दिन के हाथों में
लज्जा की करुणा देखूँ!
बहलाऊँ नव किसलय के--
झूले में अलिशिशु तेरे,
पाषाणों में मसले या
फूलों से शैशव देखूँ!
तेरे असीम आंगन की
देखूँ जगमग दीवाली,
या इस निर्जन कोने के
बुझते दीपक को देखूँ!
देखूँ विहगों का कलरव
घुलता जल की कलकल में,
निस्पन्द पड़ी वीणा से
या बिखरे मानस देखूँ!
मृदु रजतरश्मियां देखूँ
उलझी निद्रा-पंखों में,
या निर्निमेष पलकों में
चिन्ता का अभिनय देखूँ!
तुझ में अम्लान हँसी है
इसमें अजस्र आँसू-जल,
तेरा वैभव देखूँ या
जीवन का क्रन्दन देखूँ!