भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अलि से / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=रश्मि / महादेवी वर्मा }} {{KKCat…)
 
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
अब भूल गुलाब में पंकज की,
 
अब भूल गुलाब में पंकज की,
 
:अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!
 
:अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!
 +
करते करुणा-घन छांह वहां,
 +
:झुलसाया निदाघ सा दाह नहीं;
 +
मिलती शुचि आँसुओं की सरिता,
 +
:मृगवारि का सिन्धु अथाह नहीं;
 +
हँसता अनुराग का इन्दु सदा,
 +
:छलना की कुहू का निबाह नहीं;
 +
फिरता अलि भूल कहाँ भटका,
 +
:यह प्रेम के देश कि राह नहीं!
 
</poem>
 
</poem>

18:17, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

इन आँखों ने देखी न राह कहीं,
इन्हें धोगया नेह का नीर नहीं;
करती मिट जाने की साध कभी,
इन प्राणों को मूक अधीर नहीं;
अलि छोड़ी न जीवन की तरिणी,
उस सागर में जहां तीर नहीं!
कभी देखा नहीं वह देश जहां,
प्रिय से कम मादक पीर नहीं!
जिसको मरुभूमि समुद्र हुआ,
उस मेघव्रती की प्रतीति नहीं;
जो हुआ जल दीपकमय उससे,
कभी पूछी निबाह की रीति नहीं;
मतवाले चकोर से सीखी कभी,
उस प्रेम के राज्य की नीति नहीं;
तू अकिंचन भिक्षुक है मधु का,
अलि तृप्ति कहाँ जब प्रीति नहीं!
पथ में नित स्वर्ण-पराग बिछा,
तुझे देख जो फूली समाती नहीं;
पलकों से दलों में घुला मकरन्द,
पिलाती कभी अनखाती नहीं
किरणों में गुँथीं मुक्तावलियाँ,
पहनाती रही सकुचाती नहीं;
अब भूल गुलाब में पंकज की,
अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!
करते करुणा-घन छांह वहां,
झुलसाया निदाघ सा दाह नहीं;
मिलती शुचि आँसुओं की सरिता,
मृगवारि का सिन्धु अथाह नहीं;
हँसता अनुराग का इन्दु सदा,
छलना की कुहू का निबाह नहीं;
फिरता अलि भूल कहाँ भटका,
यह प्रेम के देश कि राह नहीं!