भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं / सौदा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} <poem> जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:21, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं
सब्ज़ होते खेत देखा है कभी शमशीर का
सीमो-ज़र के आगे ’सौदा’ कुछ नहीं इन्साँ की क़द्र
ख़ाक ही रहना भला था बल्कि इस अकसीर का