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नातवाँ मुर्ग हूँ ऐ रुफ़्का-ए-परवाज़
इतना आगे न बढ़ो तुम कि रहा जाता हूँ
गर्मजोशी न करो मुझसे कि मानिंदे-चिनार
अपनी ही आग में मैं आप जला जाता हूँ
हूँ मैं वो वहशि-ए-रमख़ुर्दा कि ता-दस्ते-अदम
पात खड़के है तो मानिंदे-सदा जाता हूँ
सफ़ह-ए-हस्ती पे एक हर्फ़े-ग़लत हूँ ’सौदा’
मुझे जब देखने बैठो तो उठा जाता हूँ