भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बात आवे न तो चुप रह कि गुमाँ के नज़दीक / सौदा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} <poem> बात आवे न तो चुप रह कि गुमाँ के नज़दीक स…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:25, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बात आवे न तो चुप रह कि गुमाँ के नज़दीक
सौ तरह का है सुख़न पर्द-ए-ख़ामोशी में
भूलना हमको नहीं शर्त-ए-मुरव्वत कि हमें
याद तेरी है दो आलम की फ़रामोशी में