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बात आवे न तो चुप रह कि गुमाँ के नज़दीक
सौ तरह का है सुख़न पर्द-ए-ख़ामोशी में
भूलना हमको नहीं शर्त-ए-मुरव्वत कि हमें
याद तेरी है दो आलम की फ़रामोशी में