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समन्दर कर दिया नाम इसका सबने कह-कहकर
हुए थे जमा कुछ आँसू मेरी आँखों से बह-बहकर
किसे ताक़त है शरहे-शौक़ उस मजलिस में करने की
उठा देने के डर से साँस वाँ लेते हैं रह-रहकर