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टुकड़ा-टुकड़ा धूप
सर्दी की
बूंद-बूंद खुशियां
और
आँसू-आँसू प्यास
दाना-दाना भूख
सचमुच
ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है.
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा