"उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर निकले / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> उक़ाबी<ref> गिद्ध पक्षी जैसी</ref>श…) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
उक़ाबी<ref> गिद्ध पक्षी जैसी</ref>शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर<ref>बिना बालों और परों के </ref>निकले | उक़ाबी<ref> गिद्ध पक्षी जैसी</ref>शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर<ref>बिना बालों और परों के </ref>निकले | ||
सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़<ref>सूर्यास्त-समय की क्षितिज की लालिमा </ref>में डूबकर निकले | सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़<ref>सूर्यास्त-समय की क्षितिज की लालिमा </ref>में डूबकर निकले | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 18: | ||
ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वोह बेख़बर निकले | ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वोह बेख़बर निकले | ||
− | जहाँ में अहले-ईमाँ<ref> ईमानदार लोग</ref>सूरते-ख़ुर्शीद<ref> </ref>जीते हैं | + | जहाँ में अहले-ईमाँ<ref> ईमानदार लोग</ref>सूरते-ख़ुर्शीद<ref>सूर्य की भाँति </ref>जीते हैं |
इधर डूबे उधर निकले , उधर डूबे इधर निकले | इधर डूबे उधर निकले , उधर डूबे इधर निकले | ||
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
08:10, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
उक़ाबी<ref> गिद्ध पक्षी जैसी</ref>शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर<ref>बिना बालों और परों के </ref>निकले
सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़<ref>सूर्यास्त-समय की क्षितिज की लालिमा </ref>में डूबकर निकले
हुए मदफ़ूने-दरिया<ref> दरिया में दफ़्न</ref>ज़ेरे-दरिया<ref> दरिया की निचली सतह पर</ref>तैरने वाले
तमाँचे<ref> थपेड़े</ref>मौज <ref> लहर</ref>के खाते थे जो बनकर गुहर <ref> मोती</ref>निकले
ग़ुबारे-रहगुज़र<ref>रास्ते की धूल </ref>हैं कीमिया<ref>Alchemy,अन्य धतुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने की कला</ref>पर नाज़ <ref> गर्व</ref>था जिनको
जबीनें<ref> माथे</ref>ख़ाक पर रखते थे जो अक्सीरगर निकले
हमारा नर्म-रौ <ref>सुस्त चाल वाला </ref>क़ासिद<ref> सन्देशवाहक</ref>पयामे-ज़िन्दगी<ref>जीवन का सन्देश </ref>लाया
ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वोह बेख़बर निकले
जहाँ में अहले-ईमाँ<ref> ईमानदार लोग</ref>सूरते-ख़ुर्शीद<ref>सूर्य की भाँति </ref>जीते हैं
इधर डूबे उधर निकले , उधर डूबे इधर निकले