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+ | कोई नहीं जानता यहाँ मेरी भाषा | ||
+ | मैं नहीं समझ पाता अर्थ | ||
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+ | बोल रहे लोग इस शहर्के | ||
+ | होटलों, रास्तों, स्टेशनों, बाज़ारों, क्लबों में | ||
+ | किसी से नही की बात | ||
+ | हफ़्ता हो गया | ||
+ | नहीं गया किसी के घर | ||
+ | हफ़्ता हो गया | ||
+ | नहीं मिलाया किसी से हाथ | ||
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+ | अकेले-अकेले ढो रहा उम्मीदें और स्मृतियाँ | ||
+ | हफ़्ता हो गया | ||
+ | मलबे दिखते सपनों के | ||
+ | हफ़्ता हो गया | ||
+ | हफ़्ता हो गया | ||
+ | भीतर उग आया जंगल आदिम | ||
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+ | बीहड़ वक़्त... | ||
'''रचनाकाल : 1994, तोक्यो | '''रचनाकाल : 1994, तोक्यो | ||
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21:38, 17 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कोई नहीं जानता यहाँ मेरी भाषा
मैं नहीं समझ पाता अर्थ
उन शब्दों के
बोल रहे लोग इस शहर्के
होटलों, रास्तों, स्टेशनों, बाज़ारों, क्लबों में
किसी से नही की बात
हफ़्ता हो गया
नहीं गया किसी के घर
हफ़्ता हो गया
नहीं मिलाया किसी से हाथ
हफ़्ता हो गया
अकेले-अकेले ढो रहा उम्मीदें और स्मृतियाँ
हफ़्ता हो गया
मलबे दिखते सपनों के
हफ़्ता हो गया
हफ़्ता हो गया
भीतर उग आया जंगल आदिम
मैं कहाँ-कहाँ काटता फिरा
बीहड़ वक़्त...
रचनाकाल : 1994, तोक्यो