भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुझे उदास लिया ख़ुद भी सोग़वार हुए / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatGhazal}} <poem…) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
पलट के देखना चाहा कि ख़ुद ग़ुबार<ref>धूल</ref>हुए | पलट के देखना चाहा कि ख़ुद ग़ुबार<ref>धूल</ref>हुए | ||
− | जो लोग दुश्मने-जाँ <ref>जानी-दुश्मन</ref> | + | ये इंतकाम <ref>बदला</ref>भी लेना था ज़िन्दगी को अभी |
− | थे वो ग़मगुसार <ref>ढाढस बँधाने वाले</ref>हुए | + | जो लोग दुश्मने-जाँ <ref>जानी-दुश्मन</ref>थे वो ग़मगुसार <ref>ढाढस बँधाने वाले</ref>हुए |
हज़ार बार किया तर्क़े-दोस्ती<ref>मित्रता तोड़ना</ref>का ख़याल<ref>विचार</ref> | हज़ार बार किया तर्क़े-दोस्ती<ref>मित्रता तोड़ना</ref>का ख़याल<ref>विचार</ref> |
10:20, 18 नवम्बर 2009 का अवतरण
तुझे उदास किया ख़ुद भी सोगवार<ref>शोकग्रस्त</ref>हुए
हम आप अपनी महब्बत में शर्मसार<ref>लज्जित</ref>हुए
बला की रौ थी नदीमाने-आबला-पा<ref>पाँव के छाले वालों के पास बैठने वाला</ref>को
पलट के देखना चाहा कि ख़ुद ग़ुबार<ref>धूल</ref>हुए
ये इंतकाम <ref>बदला</ref>भी लेना था ज़िन्दगी को अभी
जो लोग दुश्मने-जाँ <ref>जानी-दुश्मन</ref>थे वो ग़मगुसार <ref>ढाढस बँधाने वाले</ref>हुए
हज़ार बार किया तर्क़े-दोस्ती<ref>मित्रता तोड़ना</ref>का ख़याल<ref>विचार</ref>
मगर ‘फ़राज़’ पशेमाँ<ref>लज्जित</ref>हरेक बार हुए
शब्दार्थ
<references/>