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"कभी सुख का समय बीता / कमलेश भट्ट कमल" के अवतरणों में अंतर
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न जाने कैसे कामों में यहाँ अपना समय गुजरा ! | न जाने कैसे कामों में यहाँ अपना समय गुजरा ! | ||
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00:39, 11 दिसम्बर 2006 का अवतरण
कवि: कमलेश भट्ट कमल
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कभी सुख का समय बीता, कभी दुख का समय गुजरा
अभी तक जैसा भी गुजरा मगर अच्छा समय गुजरा !
अभी कल ही तो बचपन था अभी कल ही जवानी थी
कहाँ लगता है इन आँखों से ही इतना समय गुजरा !
बहुत कोशिश भी की, मुट्ठी में पर कितना पकड़ पाए
हमारे सामने होकर ही यूँ सारा समय गुजरा !
झपकना पलकों का आँखों का सोना भी जरूरी है
हमेशा जागती आँखों से ही किसका समय गुजरा !
उन्हीं पेडों पे फिर से आ गए कितने नए पत्ते
उन्हीं से जैसे ही पतझार का रूठा समय गुजरा !
हमें भी उम्र की इस यात्रा के बाद लगता है
न जाने कैसे कामों में यहाँ अपना समय गुजरा !