भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यही कहा था मेरे हाथ में है आईना / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | |||
<poem> | <poem> | ||
− | यही कहा था मेरे हाथ में है आईना | + | यही कहा था मेरे हाथ में है आईना<ref>दर्पण</ref> |
− | तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना | + | तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना<ref>अन्धा |
+ | </ref> | ||
− | मेरे | + | मेरे चिराग़ तो सूरज के हम-नसब<ref>बराबर वाला टक्कर |
− | + | का </ref> निकले | |
+ | ग़लत था अब के तेरी आँधियों का तख़्मीना<ref>अनुमान | ||
+ | </ref> | ||
− | ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते- | + | ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबूब<ref> हाथ के जाम को बचाते हुए </ref> |
− | वो संगे-मोहतसिब आया, बचाईयो मीना | + | वो संगे-मोहतसिब<ref>धर्माधिकारी का पत्थर </ref> आया, बचाईयो मीना |
− | हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की | + | हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख़्वाहिश |
− | सुनो | + | सुनो कि भूल चुके हम भी अहदे- पारीना<ref>प्राचीन समय, पुराना वादा </ref> |
− | उस एक | + | उस एक शख़्स की सज-धज ग़ज़ब की थी ऐ `फ़राज' |
मैं देखता था उसे, देखता था आईना | मैं देखता था उसे, देखता था आईना | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
19:45, 19 नवम्बर 2009 का अवतरण
यही कहा था मेरे हाथ में है आईना<ref>दर्पण</ref>
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना<ref>अन्धा
</ref>
मेरे चिराग़ तो सूरज के हम-नसब<ref>बराबर वाला टक्कर
का </ref> निकले
ग़लत था अब के तेरी आँधियों का तख़्मीना<ref>अनुमान
</ref>
ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबूब<ref> हाथ के जाम को बचाते हुए </ref>
वो संगे-मोहतसिब<ref>धर्माधिकारी का पत्थर </ref> आया, बचाईयो मीना
हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख़्वाहिश
सुनो कि भूल चुके हम भी अहदे- पारीना<ref>प्राचीन समय, पुराना वादा </ref>
उस एक शख़्स की सज-धज ग़ज़ब की थी ऐ `फ़राज'
मैं देखता था उसे, देखता था आईना