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"जाने कब तक रहे ये तरतीब / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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जाने कब तक रहे ये तरतीब
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दो सितारे खिले क़रीब क़रीब
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दो सितारे खिले क़रीब क़रीब<ref>पास-पास</ref>
  
 
चाँद की रोशनी से उसने लिखी
 
चाँद की रोशनी से उसने लिखी
मेरे माथे पे एक बात अजीब
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मैं हमेशा से उसके सामने थी
 
मैं हमेशा से उसके सामने थी
उसने देखा नहीं तो मेरा नसीब
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उसने देखा नहीं तो मेरा नसीब<ref>भाग्य
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रूह तक जिसकी आंच आती है
 
रूह तक जिसकी आंच आती है
कौन ये शोला-रु है दिल के क़रीब
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चाँद के पास क्या खिला तारा
 
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बन गया सारा आसमान रक़ीब
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21:11, 19 नवम्बर 2009 का अवतरण

जाने कब तक रहे ये तरतीब<ref>सिलसिला</ref>
दो सितारे खिले क़रीब क़रीब<ref>पास-पास</ref>

चाँद की रोशनी से उसने लिखी
मेरे माथे पे एक बात अजीब<ref>अद्भुत</ref>

मैं हमेशा से उसके सामने थी
उसने देखा नहीं तो मेरा नसीब<ref>भाग्य
</ref>

रूह तक जिसकी आंच आती है
कौन ये शोला-रु<ref>अँगारे-साए चेहरे जैसा
</ref> है दिल के क़रीब

चाँद के पास क्या खिला तारा
बन गया सारा आसमान रक़ीब<ref>प्रतिद्वन्द्वी, दुश्मन,शत्रु</ref>

शब्दार्थ
<references/>