भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धर्म / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=नये सुभाषित / रामधा…)
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
  
 
::(२)
 
::(२)
 +
सिकता के कण में मिला विश्व संचित सारा,
 +
::प्रच्छन्न पुष्प में देवों का संसार मिला।
 +
मुट्ठी मे भीतर बन्द मिला अम्बर अनन्त,
 +
::अन्तर्हित एक घड़ी में काल अपार मिला।
  
 
::(३)
 
::(३)
 +
अज्ञात, गहन, धूमिल के पीछे कौन खड़े
 +
::शासन करते तुम जगद्व्यापिनी माया पर?
 +
दिन में सूरज, रजनी में बन नक्षत्र कौन
 +
::तुम आप दे रहे पहरा अपनी छाया पर?
  
 
::(४)
 
::(४)
 
+
बहुत पूछा, मगर, उत्तर न आया,
 +
::अधिक कुछ पूछ्ने में और ड़रते हैं।
 +
असंभव है जह
 
::(५)
 
::(५)
  
 
::(६)
 
::(६)
 
</poem>
 
</poem>

15:16, 21 नवम्बर 2009 का अवतरण

(१)
दर्शन मात्र विचार, धर्म ही है जीवन।
धर्म देखता ऊपर नभ की ओर,
ध्येय दर्शन का मन।
हमें चाहिए जीवन और विचार भी।
अम्बर का सपना भी, यह संसार भी।

(२)
सिकता के कण में मिला विश्व संचित सारा,
प्रच्छन्न पुष्प में देवों का संसार मिला।
मुट्ठी मे भीतर बन्द मिला अम्बर अनन्त,
अन्तर्हित एक घड़ी में काल अपार मिला।

(३)
अज्ञात, गहन, धूमिल के पीछे कौन खड़े
शासन करते तुम जगद्व्यापिनी माया पर?
दिन में सूरज, रजनी में बन नक्षत्र कौन
तुम आप दे रहे पहरा अपनी छाया पर?

(४)
बहुत पूछा, मगर, उत्तर न आया,
अधिक कुछ पूछ्ने में और ड़रते हैं।
असंभव है जह
(५)

(६)