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"अपने रंग में उतर / प्रदीप कान्त" के अवतरणों में अंतर

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अपने में ही गुम है
 
अपने में ही गुम है
अपने दिले तंग में उतर
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उस दिले तंग में उतर
 
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23:29, 21 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अपने रंग में उतर
अब तो जंग में उतर

सलीका उनका क्यों
अपने ढंग में उतर

दर्द को लफ़्ज़ यूँ दे
किसी के रंज में उतर

बदतर हैं हालात ये
कलम ले, तंज में उतर

अपने में ही गुम है
उस दिले तंग में उतर