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ख़ामोश हो क्यों दादे-ए-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते / फ़राज़ का नाम बदलकर ख़ामोश हो क्यों दादे-ज़फ़ा क्यू
{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह= दर्द आशोब / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा<ref>अन्याय की प्रशंसा </ref> क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल<ref>घायल </ref> हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते
वहशत<ref>भय, त्रास </ref> का सबब रोज़न-ए-ज़िन्दाँ<ref>जेल का छिद्र </ref> तो नहीं है
मेहर-ओ-महो-ओ-अंजुम<ref>सूर्य, चाँद और तारे </ref> को बुझा क्यूँ नहीं देते
ख़मोश हो क्यों दादइक ये भी तो अन्दाज़-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ<brref>जीवन के दुखों का इलाज </ref> है बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते ऐ चारागरो!<brref>वैद्यो,चिकित्सको <br/ref>दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते
वहशत का सबब रूज़न-ए-ज़िन्दाँ तो नहीं है मुंसिफ़<brref>न्यायाधीश </ref> हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे महर-ओ-माह-ओ-अन्जुम को बुझा क्यूँ नहीं देते मुजरिम<brref>अपराधी <br/ref>हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते
इक ये भी रहज़न<ref>लुटेरा </ref> हो तो अन्दाज़हाज़िर है मता-ए-इलाजदिल-ए-ग़म-ए-जाँ है <brref>दिल और जान की पूँजी </ref> भी ऐ चारागरो दर्द बढ़ा रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते <br><br>
मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे <br>मुजरिम है अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते <br><br> रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी <br>रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते <br><br> क्या बीत गई अब के "फ़राज़" अहल-ए-चमन पर <brref>चमन वाले </ref> पर यारान-ए-क़फ़स <ref>जेल के साथी </ref> मुझको सदा <ref> आवाज़</ref> क्यूँ नहीं देते <br><br/poem>{{KKMeaning}}