भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऋतु मुस्कान / जया जादवानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:23, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैं पूरी ऋतु ही लेकर आई थी
हर कालखंड का हर मौसम
तुमने चुन लिए सारे वसन्त
अपने लिए
सूखे पत्तों की गठरी
वापस लाई मैं
समय के बिल्कुल
दूसरे मुहाने पर
जब खोलकर देखा
एक हरा पत्ता जाने कैसे
मुस्करा रहा
मेरी हथेली पर
तेरी मुस्कान का।