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"देह का गणित / जया जादवानी" के अवतरणों में अंतर

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21:33, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बहुत सीधा है देह का गणित
दो और दो कभी नहीं होते पाँच

कान लगा कर सुनो तो
शीघ्र बता देता
कहाँ लोहा
कहाँ पानी
कहाँ आग
ज्वालामुखी कहाँ
सब कुछ सीधा और साफ़

जैसे धरती
न हो बारिश तो पड़ जातीं दरारें
हो कई दिनों तक लगातार
बह जाता सब कुछ निशान छोड़े बिना
न शामिल करो मन को तो

बहुत सीधा है देह का गणित
यहाँ दो और दो चार होते ही नहीं
यहाँ सम्पूर्ण हो जाता एक
अधूरे होते दो, दो छोरों पर

हर बार फ़ेल हो जाती है देह
इस इम्तहान में
हर बार मिलते हैं मन को ही
सबसे ज़्यादा अंक

जबकि
देखी नहीं कभी उसने
क्षण को भी पलटकर
क़िताब इस देह की।