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21:45, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हो सकता है कि तुम्हें सुनाई दे
आत्मा का अनहद नाद
शून्य में झरती पत्ती चुपचाप
धूप गिलहरी का कूदकर
मुँडेर पर बैठना बिलाना वृक्ष के अन्धेरे में
चन्द्रमा का उतरना
सूनी बावड़ी में और बने रहना
आकाश का उतना सीढ़ियाँ अदृश्य
छाती में खो जाना ख़ामोश
ओस का फिसलना दूब की नोक पर
चित्र बना देना स्पष्ट
एक तारे का टूटकर गिरना
मनौती की माँग में रक्ताभ
इठला कर देखना फूल का
पास आती तितलियों को
तिनके का उत्सुक बाहें फैला
पुकारना चिड़िया को पूरी आवाज़ में
हँसना चट्टान फोड़कर बाहर आए
एक नन्हे किसलय का
हो सकता है तुम्हें दिखाई दे
कुछ न कुछ होने की कगार पर
हो सकता है प्रेम अभी गया न हो
बीच राह में तुम्हें छोड़कर...।