भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चाह / जया जादवानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:09, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ज़रा-सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिन्गारी से
दहकता है जंगल
अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिए पूरा
पृथ्वी पूरी, पूरा सूर्य
सिर्फ़ ज़रा-सी उड़ान और
आसमाँ चाहिए पूरा
न पीने को, न जीने को
चाहिए ख़ुद को डुबोने को।