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22:16, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
लेकर नक्षत्र हाथों में
बजाऊँ मैं करताल की तरह
जिसकी धुन पर नाचे पूरी पृथ्वी
पूरा आसमान
समूची आकाशगंगाएँ
कि बरसे जल समस्त धाराओं में
प्रेम को कैसे व्यक्त कर सकती हूँ
मैं
इसके सिवाय...।