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"विदागीत / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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03:22, 23 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

भागते हैं,
छूटते ही जा रहे हैं पेड़
पीपल-बैर-बरगद-आम के,
बिछुड़ती पग-लोटती घासें,
खिसकती ही जा रही हैं
रेत परिचय की अनुक्षण,
दूरियों की खुल रही हैं मुट्ठियाँ!
फिर किसी आवर्त्त में बंध
कभी आऊँगा यहाँ
रेत जाने किन तहों तक धँसेगी
परिचय न चमकेगा कभी भी
चुप रहेंगे पेड़-धरती घास सब...
तब मुझे पहचान
छोड़ता हूँ आज जिसको
टेरेगा सहसा क्या
विदा का बूढ़ा-सा पाखी?


रचनाकाल : 1957