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<poem>
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे,
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब <ref>दोस्त</ref> मेरे।
उम्मीद के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद <ref>देखने को</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मेरे।
ज़रा संभालना रुला न डालें तुझको कहीं जवाब मेरे।
(अहबाब : दोस्त)(दीद : देखने को) </poem> 
</poem>
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