भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आ / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} <poem>मैं तुझे खुद में शामिल करता …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:16, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण
मैं तुझे खुद में शामिल करता हूँ
मेरी रातों में कही जा तू कविता
फैलता हुआ तुझे थामने स्थिर होता
लील लेता तुझे जब
धरती पर अनंत दुखों का लावा पिघलता ।
बहुत दिनों के बाद तुझसे रूबरू होता हूँ ।
मेरी उँगलियाँ बंद पड़ी हैं
उन्हें खुलने से डर लगता है ।
तू मेरे आकाश में है
आ तू मेरे सीने पे आ
मेरी उँगलियों को तेरा इंतज़ार है
जीवन गीत के छींटों से मुझे गीला कर
तू आ कविता।
डर होता है छत गिरने का
भूकंप आने का
डर न जाने क्या क्या होता।
प्रतिकृतियाँ जिनमें ढूँढते हैं
वे नक्षत्र और दूर हो चले
औरों की आँखों में जो दिखते हैं लिबास
डर होता है कि वे मुझपे ही जड़े हैं ।
आ तू मेरी उँगलियों से बरस
कि वे धरती को डर से मुक्त करें
पेड़ों को खिड़की से अंदर हूँ खींच लाता।