भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तिर्याक़ / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatNazm}} <poem> …)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू
 
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू
  
कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref></ref>  
+
कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref>क्षण
 +
</ref>  
 
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
 
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
 
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!
 
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!

19:32, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण


तिर्याक़<ref>विषहर</ref>


जब तिरी उदास अँखड़ियों से
पल-भर को चमक उठे थे आँसू
क्या-क्या न गुज़र गई थी दिल पर!
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू

कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref>क्षण
</ref>
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!
जैसे मुझे कोई ग़म नहीं था
तू! मेरे लिए ! उदास इतनी
क्या था ये अगर करम<ref>अनुकंपा,कृपा</ref> नहीं था

तू आज भी मेरे सामने है
आँखों में उदासियाँ न आँसू
एक तंज़<ref>व्यंग्य</ref> है तेरी हर अदा में
चुभती है तिरे बदन की ख़ुश्बू<ref>सुगंध</ref>
या अब मेरा ज़ह्र<ref>विष</ref>पी चुकी तू

शब्दार्थ
<references/>