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"मृत्यु / ऋतु पल्लवी" के अवतरणों में अंतर
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जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर | जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर | ||
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निचुड़ा हुआ निस्सार | निचुड़ा हुआ निस्सार | ||
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खाली हो जाता है | खाली हो जाता है | ||
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संवेदना का हर आधार.. | संवेदना का हर आधार.. | ||
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सोख लेता है वक्त भावनाओं को, | सोख लेता है वक्त भावनाओं को, | ||
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सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में) | सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में) | ||
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अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति | अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति | ||
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सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम | सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम | ||
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और आँख बंद कर लेते हैं. | और आँख बंद कर लेते हैं. | ||
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पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार | पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार | ||
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और निरर्थकता के बोझ तले | और निरर्थकता के बोझ तले | ||
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दबा देते हैं उसके अस्तित्व को | दबा देते हैं उसके अस्तित्व को | ||
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तब वह व्यक्ति मर जाता है,अपने सारे प्रतिदान देकर | तब वह व्यक्ति मर जाता है,अपने सारे प्रतिदान देकर | ||
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और हमारे केवल कुछ अश्रु लेकर.. | और हमारे केवल कुछ अश्रु लेकर.. | ||
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19:45, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण
जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर
निचुड़ा हुआ निस्सार
खाली हो जाता है
संवेदना का हर आधार..
सोख लेता है वक्त भावनाओं को,
सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में)
अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति
सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम
और आँख बंद कर लेते हैं.
पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार
और निरर्थकता के बोझ तले
दबा देते हैं उसके अस्तित्व को
तब वह व्यक्ति मर जाता है,अपने सारे प्रतिदान देकर
और हमारे केवल कुछ अश्रु लेकर..