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शरीर / ऋतुराज

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|रचनाकार=ॠतुराज
}}
{{KKCatKavita}}<poem>सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और<br>तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है<br>आनंद के अंतिम उत्‍कर्ष की खोज के<br>समय की वेदना असफल चेतना के<br>निरवैयक्तिक स्पर्शों की वेदना आयु के<br>उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना<br><br>
अभी उस प्रथम दिन के प्राण की स्मृति <br>शेष है और बीच के अंतराल में किए<br>पाप अप्रायश्चित ही पड़े हैं<br><br>
लघु आनंद वृत्तों की गहरी झील में<br>बने रहने का स्वार्थ कैसे भुला दोगे<br>पृथ्वी से आदिजीव विभु जैसा प्यार<br>कैसे भुला दोगे अनवरत् सुंदरता की<br>स्तुति का स्वभाव कैसे भुला दोगे<br><br>
अभी तो इतने वर्ष रूष्ट रहे इसका<br>उत्तर नहीं दिया अभी जगते हुए<br>अंधकार में निस्तब्धता की आशंकाओं का<br>समाधान नहीं किया है<br><br>
यह सोचने की मशीन<br>यह पत्र लिखने की मशीन<br>यह मुस्कुराने की मशीन<br>यह पानी पीने के मशीन<br>इन भिन्न-भिन्न प्रकारों की<br>मशीनों का चलना रूका नहीं है अभी<br>
तुम्हारी मुक्ति नहीं है
</poem>
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