"शरीर / ऋतुराज" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ॠतुराज }} सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और<br> तुम में अब ...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=ॠतुराज | |रचनाकार=ॠतुराज | ||
}} | }} | ||
− | सारे | + | {{KKCatKavita}} |
− | तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है | + | <poem> |
− | आनंद के अंतिम उत्कर्ष की खोज के | + | सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और |
− | समय की वेदना असफल चेतना के | + | तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है |
− | निरवैयक्तिक | + | आनंद के अंतिम उत्कर्ष की खोज के |
− | उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना | + | समय की वेदना असफल चेतना के |
+ | निरवैयक्तिक स्पर्शों की वेदना आयु के | ||
+ | उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना | ||
− | अभी उस प्रथम दिन के प्राण की | + | अभी उस प्रथम दिन के प्राण की स्मृति |
− | शेष है और बीच के अंतराल में किए | + | शेष है और बीच के अंतराल में किए |
− | पाप अप्रायश्चित ही पड़े हैं | + | पाप अप्रायश्चित ही पड़े हैं |
− | लघु आनंद | + | लघु आनंद वृत्तों की गहरी झील में |
− | बने रहने का | + | बने रहने का स्वार्थ कैसे भुला दोगे |
− | + | पृथ्वी से आदिजीव विभु जैसा प्यार | |
− | कैसे भुला दोगे अनवरत् सुंदरता की | + | कैसे भुला दोगे अनवरत् सुंदरता की |
− | + | स्तुति का स्वभाव कैसे भुला दोगे | |
− | अभी तो इतने वर्ष | + | अभी तो इतने वर्ष रूष्ट रहे इसका |
− | + | उत्तर नहीं दिया अभी जगते हुए | |
− | अंधकार में | + | अंधकार में निस्तब्धता की आशंकाओं का |
− | समाधान नहीं किया है | + | समाधान नहीं किया है |
− | यह सोचने की मशीन | + | यह सोचने की मशीन |
− | यह पत्र लिखने की मशीन | + | यह पत्र लिखने की मशीन |
− | यह | + | यह मुस्कुराने की मशीन |
− | यह पानी पीने के मशीन | + | यह पानी पीने के मशीन |
− | इन | + | इन भिन्न-भिन्न प्रकारों की |
− | मशीनों का चलना रूका नहीं है अभी | + | मशीनों का चलना रूका नहीं है अभी |
− | + | तुम्हारी मुक्ति नहीं है | |
+ | </poem> |
19:56, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और
तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है
आनंद के अंतिम उत्कर्ष की खोज के
समय की वेदना असफल चेतना के
निरवैयक्तिक स्पर्शों की वेदना आयु के
उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना
अभी उस प्रथम दिन के प्राण की स्मृति
शेष है और बीच के अंतराल में किए
पाप अप्रायश्चित ही पड़े हैं
लघु आनंद वृत्तों की गहरी झील में
बने रहने का स्वार्थ कैसे भुला दोगे
पृथ्वी से आदिजीव विभु जैसा प्यार
कैसे भुला दोगे अनवरत् सुंदरता की
स्तुति का स्वभाव कैसे भुला दोगे
अभी तो इतने वर्ष रूष्ट रहे इसका
उत्तर नहीं दिया अभी जगते हुए
अंधकार में निस्तब्धता की आशंकाओं का
समाधान नहीं किया है
यह सोचने की मशीन
यह पत्र लिखने की मशीन
यह मुस्कुराने की मशीन
यह पानी पीने के मशीन
इन भिन्न-भिन्न प्रकारों की
मशीनों का चलना रूका नहीं है अभी
तुम्हारी मुक्ति नहीं है