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"माँ का दुख / ऋतुराज" के अवतरणों में अंतर

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कितना प्रामाणिक था उसका दुख
 
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
 
 
लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो
 
लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो
 
 
उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी
 
उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी
 
  
 
लड़की अभी सयानी थी
 
लड़की अभी सयानी थी
 
 
इतनी भोली सरल कि उसे सुख का
 
इतनी भोली सरल कि उसे सुख का
 
 
आभास तो होता था
 
आभास तो होता था
 
 
पर नहीं जानती थी दुख बाँचना
 
पर नहीं जानती थी दुख बाँचना
 
 
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश में
 
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश में
 
 
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की
 
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की
 
  
 
माँ ने कहा पानी में झाँककर
 
माँ ने कहा पानी में झाँककर
 
 
अपने चेहरे पर मत रीझना
 
अपने चेहरे पर मत रीझना
 
 
आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है
 
आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है
 
 
जलने के लिए नहीं
 
जलने के लिए नहीं
 
 
वस्त्राभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
 
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बंधन हैं जीवन के
 
बंधन हैं जीवन के
 
  
 
माँ ने कहा लड़की होना
 
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पर लड़की जैसा दिखाई मत देना।
 
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20:00, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो
उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी

लड़की अभी सयानी थी
इतनी भोली सरल कि उसे सुख का
आभास तो होता था
पर नहीं जानती थी दुख बाँचना
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश में
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है
जलने के लिए नहीं
वस्त्राभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसा दिखाई मत देना।