भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खून के घड़े / ऋषभ देव शर्मा

11 bytes added, 14:49, 24 नवम्बर 2009
|संग्रह=ताकि सनद रहे / ऋषभ देव शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
 
किसानों के खून के घड़े
इसी जमीन में
दबे पड़े!
 
जिसने उपजाया अन्न,
विश्वासघातिनी झंझाओं से
कितना और लड़े?
 
बहुत राजा ने पिलाया
कल्पतरु के पात सब
पीले पड़े!
 
जो चढ़े सिहासनों पर
वही शासक धरा का,
वह धराधिप हो!
 
वही दुष्काल के आगे अड़े!!
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits