Changes

छब्बीस जनवरी / ऋषभ देव शर्मा

5 bytes removed, 14:50, 24 नवम्बर 2009
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
लोकतंत्र का पर्व शुभंकर
मंगलमय हो !
तानाशाही मिटे ,
सम्प्रदाय औ' जातिवाद की
धुंध कटे , अंधियार छंटे !
गति को वरें -
प्राणों की पुकार को
सुन लें !
अब तक का इतिहास यही है :
सब
जनता के खसम बन गए !
ऐसा ही होता आया है !
ऐसा ही होने वाला है !!
कब तक
लोक शक्ति मुहताज रहेगी
त्रिशंकुओं के तंत्र मंत्र की ?
लोकतंत्र में जो निर्णय हो
कुर्सीवालों के समक्ष अब
एक समांतर लोकपक्ष हो !!
जो हो ,
जनता की इच्छा से तय हो !
लोकतंत्र का पर्व शुभंकर
मंगलमय हो !!
 
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits