भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आकांक्षा / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>मन हो इतना कुशल गढ़ने न हों क…)
(कोई अंतर नहीं)

08:13, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण

मन
हो इतना कुशल
गढ़ने न हों कृत्रिम अमूर्त्त कथानक
चढ़ना उतरना
बहना होना
हँसना रोना इसलिए
कि ऐसा जीवन

हो इतना चंचल
गुजर तो फूटे
हँसी की धार
हर दो आँख कल कल

डर तो डरे जो कुछ भी जड़
प्रहरियों की सुरक्षा में भी
डरे अकड़
खिल हर दूसरा खिले साथ
बढ़ बढ़े हर प्रेमी की नाक
हर बात की बात
बढ़े हर जन
ऐसा ही बन

कुछ बनना ही है
तो ऐसा ही बन।