"पहली बूंद / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | यह | + | यह उमस से भरी रात यह हाँफ रहा छोटा-सा आँगन |
− | यह वर्षा का पहला चुम्बन। | + | ::यह वर्षा का पहला चुम्बन। |
− | इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया | + | इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुँधला कुहरा, |
− | यह वर्षा का प्रथम स्वप्न | + | यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धँस गया थकन में मन की, गहरा |
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर | गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर | ||
− | एक रूपहली | + | एक रूपहली बूँद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन |
− | यह वर्षा का पहला चुम्बन। | + | ::यह वर्षा का पहला चुम्बन। |
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20:27, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण
यह बादल की पहली बूँद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर काँप उठा मेरा मन।
बरगद की गभीर बाँहों से बादल आ आँगन पर छाए
झाँक रहा जिनसे मटमैला थका चाँद पत्तियाँ हटाए
नीची-ऊँची खपरैलों के पार शान्त वन की गलियों में
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
पिछवारे की बँसवारी में फँसा हवा का हलका अंचल
खिंच-खिंच पडते बाँस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
चरनी पर बाँधे बैलों की तड़पन बन घण्टियाँ बज रहीं
यह उमस से भरी रात यह हाँफ रहा छोटा-सा आँगन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुँधला कुहरा,
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धँस गया थकन में मन की, गहरा
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूँद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।