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"अब वह नहीं आती / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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'''(रोज़ी वट्टा के लिए)
 
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एक अरसा बीत गया
 
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अब वह नहीं आती
 
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उसकी याद आती है
 
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तब वह आती थी
 
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ख़ूबसूरत, नन्हे खरगोश की तरह
 
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हड़बड़ाती हुई
 
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प्रेम में बेचैन, तड़फड़ाती हुई
 
प्रेम में बेचैन, तड़फड़ाती हुई
 
  
 
वह आती थी
 
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अधसोई-सी, अधजागी-सी
 
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थकी हुई-सी, भागी-सी
 
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लापरवाह अपने चारों ओर से
 
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ढूँढ रही हो ज्यों मुझे भोर से
 
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प्रेम में मेरे डूबी थी ऎसे
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प्रेम में मेरे डूबी थी ऐसे
 
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समुद्र-सी उन्मत्त, पागल हो जैसे
 
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आते ही मुझसे यूँ लिपट जाती थी
 
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उमंग से मेरी फटने लगती छाती थी
 
उमंग से मेरी फटने लगती छाती थी
 
  
 
कभी वह आती थी उदास, कँपकँपाती हुई
 
कभी वह आती थी उदास, कँपकँपाती हुई
 
 
खामोश रहती थी, बात नहीं करती थी
 
खामोश रहती थी, बात नहीं करती थी
 
 
कभी घर-भर में या बाहर कभी लान में
 
कभी घर-भर में या बाहर कभी लान में
 
 
चक्कर काटती रहती थी मौन
 
चक्कर काटती रहती थी मौन
 
 
मेरे मन को अपनी उदासी से दहलाती हुई
 
मेरे मन को अपनी उदासी से दहलाती हुई
 
  
 
कभी वह घंटियों की तरह घनघनाती आती थी
 
कभी वह घंटियों की तरह घनघनाती आती थी
 
 
बच्चों की तरह मुझे दुलराती थी
 
बच्चों की तरह मुझे दुलराती थी
 
 
मेरे बालों में उँगलियाँ फिराती थी
 
मेरे बालों में उँगलियाँ फिराती थी
 
 
मेरे माथे पर, नाक पर, गालों पर, होठों पर
 
मेरे माथे पर, नाक पर, गालों पर, होठों पर
 
 
अपने ऊष्म, गर्म चुम्बन चिपकाती थी
 
अपने ऊष्म, गर्म चुम्बन चिपकाती थी
 
 
मेरी मूँछों को, पलकों को, भौहों को, कानों को
 
मेरी मूँछों को, पलकों को, भौहों को, कानों को
 
 
नन्ही, गोरी, पतली उँगलियों से सहलाती थी
 
नन्ही, गोरी, पतली उँगलियों से सहलाती थी
 
 
बारिश की रिमझिम-सा स्नेह बरसाती थी
 
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वह आती थी
 
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अब नहीं आती
 
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उसकी याद आती है
 
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'''1984 में रचित
1984 में रचित
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20:47, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण

(रोज़ी वट्टा के लिए)


एक अरसा बीत गया
अब वह नहीं आती
उसकी याद आती है

तब वह आती थी
ख़ूबसूरत, नन्हे खरगोश की तरह
हड़बड़ाती हुई
प्रेम में बेचैन, तड़फड़ाती हुई

वह आती थी
अधसोई-सी, अधजागी-सी
थकी हुई-सी, भागी-सी
लापरवाह अपने चारों ओर से
ढूँढ रही हो ज्यों मुझे भोर से


प्रेम में मेरे डूबी थी ऐसे
समुद्र-सी उन्मत्त, पागल हो जैसे
आते ही मुझसे यूँ लिपट जाती थी
उमंग से मेरी फटने लगती छाती थी

कभी वह आती थी उदास, कँपकँपाती हुई
खामोश रहती थी, बात नहीं करती थी
कभी घर-भर में या बाहर कभी लान में
चक्कर काटती रहती थी मौन
मेरे मन को अपनी उदासी से दहलाती हुई

कभी वह घंटियों की तरह घनघनाती आती थी
बच्चों की तरह मुझे दुलराती थी
मेरे बालों में उँगलियाँ फिराती थी
मेरे माथे पर, नाक पर, गालों पर, होठों पर
अपने ऊष्म, गर्म चुम्बन चिपकाती थी
मेरी मूँछों को, पलकों को, भौहों को, कानों को
नन्ही, गोरी, पतली उँगलियों से सहलाती थी
बारिश की रिमझिम-सा स्नेह बरसाती थी

वह आती थी
अब नहीं आती
उसकी याद आती है

1984 में रचित