भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोशनी / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} <poem>कभी कभी तारों भरा आस्माँ देख…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:54, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कभी कभी तारों भरा आस्माँ देख
थक जाता हूँ।
इत्ती बड़ी दुनिया
छोटा मैं
फिर खयाल आता है
तारे हैं
क्योंकि वे टिमटिमाते हैं
रोशनी देख सकने की ताकत का अहसास
मुझे एक तारा बनने को कहता है
तब आस्माँ बहुत सुंदर लगता है।