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07:56, 27 नवम्बर 2009 का अवतरण

अभी समय है
कि बादलों को शिकायत सुनाएँ
धरती के रुखे कोनों की
मुट्ठियाँ भर पीड़ गज़ल कोई गाएँ

अभी समय है
आषाढ़ के रोमांच का मिथक
यह रिमझिम भ्रमजाल हटाएँ
सहज दिखता पर सच नहीं जो
सब झूठ है सब झूठ है चिल्लाएँ

अभी समय है
बिजली को दर्ज़ यह कराएँ
बिकती सड़कों पर सौदामिनी
उसकी गीली रात भूखी है
सिहरती बच्ची के बदन पर
शब्द कुछ सही बिछाएँ

अभी समय है
कुछ नहीं मिलता कविता बेचकर
कविता में कुछ कहना पाखंड है
फिर भी करें एक कोशिश और
दुनिया को ज़रा और बेहतर बनाएँ।