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"वार्ता:ज़िन्दगी का नमक / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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जब कहीं कुछ नहीं होता
एक शान्त नीली झील में
सुस्ताती हैं सारी हलचलें
वक्त बस झिरता है
धीमे झरने सा
धरती खोलती है
पुराना अल्बम
जगह जगह आंसुओं
और खून के धब्बे हैं उस पर
अनगिनत वारदातें घोड़ों की टापें
धूल और बवंडर के बीच
याद करती है धरती
वे तारीखें साफ किया है जिन्होंने
उसकी देह पर का कीचड़
धोया है मुंह बहते पसीने से
याद करेगी धरती कई चीजें अभी और
और कई चेहरे