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"तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर
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तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं | तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं |
04:06, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं
मगर ये लोग पागल हो गये हैं
बहारें लेके आये थे जहाँ तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं
यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गये हैं
कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल
कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं
निगाह-ए-यास को नींद आ रही है
मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं
जिन्हें हम देख कर जीते थे "नासिर"
वो लोग आँखों से ओझल हो गये हैं