भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हुस्न को दिल में छुपा कर देखो / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=नासिर काज़मी | |रचनाकार=नासिर काज़मी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
हुस्न को दिल में छुपा कर देखो<br> | हुस्न को दिल में छुपा कर देखो<br> |
04:19, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हुस्न को दिल में छुपा कर देखो
ध्यान की शमा जला कर देखो
क्या खबर कोई दफीना मिल जाये
कोई दीवार गिरा कर देखो
फाख्ता चुप है बड़ी देर से क्यूँ
सरो की शाख हिला कर देखो
नहर क्यूँ सो गई चलते-चलते
कोई पत्थर ही गिरा कर देखो
दिल में बेताब हैं क्या-क्या मंज़र
कभी इस शहर में आ कर देखो
इन अंधेरों में किरन है कोई
शबज़दों आंख उठाकर देखो