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"पिता-1 / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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सुर्ख़ाब के पर रख दो | सुर्ख़ाब के पर रख दो |
09:07, 30 नवम्बर 2009 का अवतरण
पिता (एक)
पिता! मेरे कंधों पर
सुर्ख़ाब के पर रख दो
मैं छू लेना चाहता हूँ
पहाड़ों की नर्म धूप
मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
मैं पा लेना चाहता हूँ
सात समंदर पार के
नीलम देश की राजकन्या
मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
पौध हो जाएँ.