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"मस्तक पर ठुकी कील / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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07:40, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण
मस्तक पर ठुकी कील
मोर हो फ़ाख़्ताओं के पैरों से नाचना
बहुत कठिन है/तब और भी कठिन
जब फ़ाख़्ताओं को देखते/तुम्हें सोचना पड़े
कि तुम्हारे पंखों का विस्तार
उचित नहीं है
कि तुम्हारे पंखों पर के
विविध रंगों की चकाचौंध
तुम्हें सौम्य नहीं रह जाने देता
कि तुम्हारी कलगी
तुम्हारे मस्तक पर ठुकी कील है
तुम्हारे चुक जाने की परिचायक.