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"मेरे गान / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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::विकल मेरे गान! | ::विकल मेरे गान! | ||
ठहर पल भर, धीर धर, ओ विकल मेरे गान! | ठहर पल भर, धीर धर, ओ विकल मेरे गान! | ||
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+ | ::आज तू मत खोल उर के द्वार, | ||
+ | :आज भीतर बंद है विक्षिप्त हाहाकार, | ||
+ | थम जरा, मेरे हृदय में थमें हैं तूफान! | ||
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+ | ::ग्रंथि तू मत खोल उर की आज, | ||
+ | :बँधी है अभिशाप की गंभीर गर्जन गाज, | ||
+ | गिरेगी वह; और जिस पर रोष, वह नादान! | ||
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+ | ::पास मत आ आज, मेरे कीर! | ||
+ | :उठ रहीं हैं लाल लपटें आज सीना चीर! | ||
+ | धधकते अरमान मेरे, सुलगते हैं प्राण! | ||
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+ | ::कंठ कुंठित, हृदय है पाषाण, | ||
+ | :आँख में आँसू न, चुभते अग्नि के-से बाण, | ||
+ | मृत्यु मुझसे दूर, पर क्यों प्रलय का सामान? | ||
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+ | ::एक मुट्ठी हड्डियाँ हैं भार, | ||
+ | :एक दिन ये फूल होंगी, अग्नि होगी क्षार; | ||
+ | और बिखरे पड़े होंगे कुछ दुखद आख्यान! | ||
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+ | ::विकल मेरे गान! | ||
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15:01, 3 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
विकल मेरे गान!
ठहर पल भर, धीर धर, ओ विकल मेरे गान!
आज तू मत खोल उर के द्वार,
आज भीतर बंद है विक्षिप्त हाहाकार,
थम जरा, मेरे हृदय में थमें हैं तूफान!
ग्रंथि तू मत खोल उर की आज,
बँधी है अभिशाप की गंभीर गर्जन गाज,
गिरेगी वह; और जिस पर रोष, वह नादान!
पास मत आ आज, मेरे कीर!
उठ रहीं हैं लाल लपटें आज सीना चीर!
धधकते अरमान मेरे, सुलगते हैं प्राण!
कंठ कुंठित, हृदय है पाषाण,
आँख में आँसू न, चुभते अग्नि के-से बाण,
मृत्यु मुझसे दूर, पर क्यों प्रलय का सामान?
एक मुट्ठी हड्डियाँ हैं भार,
एक दिन ये फूल होंगी, अग्नि होगी क्षार;
और बिखरे पड़े होंगे कुछ दुखद आख्यान!
विकल मेरे गान!