भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूधिया सेहुँड़ / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>सेहुँड़ जितना भी बढता है, अपनी हर ब…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:04, 6 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
सेहुँड़ जितना भी बढता है, अपनी
हर बाढ़ में, मूल से शीर्ष तक,
काँटे ही काँटे रखता है।
समय आने पर
सेहुँड में फूल भी आते हैं
ये फूल कई रंग के होते हैं
इस के पत्ते मोटे ही मिलते हैं
इन को मोडने पर टूट जाते हैं
और टूटने पर दूध जैसा पदार्थ
निकलता है।
सेहुँड़ दूधिया पदार्थ से निर्मित है।
अनेक रूपों में यह
मानव की सेवा करता है।