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18:05, 6 दिसम्बर 2009 का अवतरण
|रचनाकार=तुलसीदास
== बजरंग बाण ==
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान ।
तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।
जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।
जन के काज विलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै ।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा,सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहुं लात गई सुरलाका ।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा,सीता निरखि परम पद लीन्हा ।