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"बजरंग बाण / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।
 
तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।
  
जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी
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जय हनुमंत संत हितकारी सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै
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जन के काज विलंब न कीजै आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा,सुरसा बदन पैठि विस्तारा
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जैसे कूदि सिंधु महि पारा सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहुं लात गई सुरलाका
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आगे जाय लंकिनी रोका मारेहुं लात गई सुरलाका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा,सीता निरखि परम पद लीन्हा ।
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जाय विभीषण को सुख दीन्हा सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
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बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
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अक्षयकुमार को मारि संहारा ।  लूम लपेटि लंक को जारा ।।
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लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ।।
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अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।।
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जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वबै  दुख करहु निपाता ।।
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जै हनुमान जयति बलसागर सुर समूह समरथ भटनागर ।।
  
  
 
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18:31, 6 दिसम्बर 2009 का अवतरण



== बजरंग बाण ==

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान ।
तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।

जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलंब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहुं लात गई सुरलाका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ।।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।।
जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वबै दुख करहु निपाता ।।
जै हनुमान जयति बलसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।