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Kavita Kosh से
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! ,लोन(नमक)
२०.
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखी साजन न सखी सखि! आम।।
23.
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखी साजन न सखी सखि! चंदा।।
24.
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखी साजन न सखी सखि! मैंना।।
25.
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखी साजन न सखी सखि! तोता।।
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