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"धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली" के अवतरणों में अंतर

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क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत
 
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हमको ताक़त नहीं जुदाई की
 
हमको ताक़त नहीं जुदाई की
 
  
 
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे
 
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे

20:18, 8 दिसम्बर 2009 का अवतरण

धूम थी अपनी पारसाई की
की भी और किससे आश्नाई की

क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत
हमको ताक़त नहीं जुदाई की

मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे
तुमको आदत है ख़ुदनुमाई की

न मिला कोई ग़ारते-ईमाँ
रह गई शर्म पारसाई की

मौत की तरह जिससे डरते थे
साअत आ पहुँची उस जुदाई की

ज़िंदा फरने की हवस है ‘हाली’
इन्तहा है ये बेहयाई की