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जब बरबस ही रसधार बहे | जब बरबस ही रसधार बहे |
02:26, 9 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
जब बरबस ही रसधार बहे
जब निराधार ही चढ़े बेल
बिन बादर की जब झड़ी लगे
बिन जल के हंसा करे केलि
तब जानो वह पल आन पड़ा
जिस पल अपलक रह जाना है
अब मिलना और बिछुड़ना क्या
भर अंक में अंक समाना है...
और आँख खुली रह जाना है।